सोमवार, 23 जून 2014

मूर्खता का मूल्य

कभी-कभी
बहुत  पीड़ा  होती  है
जब  आप  बहुत  सदाशयता  पूर्वक
किसी  को  रोकते  हैं
गड्ढे  में  गिरने  से
और  वह  कूद  जाता  है
नीचे
बिना  आपकी  सदाशयता  पर
विश्वास  किए  !

वैसे,  सच  कहा  जाए  तो
यही  तो  किया  है
आपने  भी  !

बार-बार  रोकने  के  बाद  भी
आ  ही  गए  आप
आदमख़ोरों  की  चालों  में
और  कूद  गए  गड्ढे  में  !

अब  सहलाते  रहिए  अपने  घाव
भुगतते  रहिए  दिन-प्रतिदिन
शरीर  और  मन  पर
पड़ने  वाली  चोटों  को  !

हमें  अब  कुछ  नहीं  कहना  है  आपसे
कम  से  कम  अगले  पांच  वर्ष  तक

पांच  वर्ष  बहुत  अधिक  नहीं  होते
मूर्खता  का  मूल्य  चुकाने  के  लिए
और  काम  भी  नहीं  होते
जन-विरोधी  सत्ता  को
उखाड़  फेंकने  के  लिए  !

                                                                       (2014)

                                                               -सुरेश  स्वप्निल

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